तुम्हारा यूं मिलना कोई इत्तेफाक ना था, अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें तन्हाई में बैठूं तो इल्ज़ाम-ए-मुहब्बत। जिंदगी में इंसान उस वक्त बहुत टूट जाता है, कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है…” शाद अज़ीमाबादी टैग https://youtu.be/Lug0ffByUck